गुलाबी गेंद और क्रिकेट | दिन और रात के टेस्ट मे लाल गेंद को देखने मे काफी मुशकिल होती थी इस वजह से गुलाबी गेंद का इस्तेमाल होना शुरू हुआ | गुलाबी गेंद मे लाल की तुलने मे उपरी परत पर अधिक पेंट का इस्तेमाल किया जाता है ताकि गेंद जल्दी गंदी न हो | इस गेंद मे लाल गेंद की तुलना मे अधिक चमक होती है | चमक अधिक होने का मतलब तेज़ गेंदबाजों को स्विंग अधिक मिलती है | रात के मैच मे फ्लड लाइट का इस्तेमाल किया जाता है जिसकी वजह से लाल गेंद को देखने मे दिक्कत आती है जबकि सफ़ेद गेंद जल्दी खराब हो जाती हैं |
9 साल तक चला शोध फिर मिली मंजूरी
गुलाबी गेंद को मंजूरी 9 साल से लम्वे शोध (research ) के बाद मिली है | 2006 मे गुलाबी कुकाबुरा गेंद से एक चेरिटी मैच खेला गया था | इसके बाद एमसीसी ने दिन रात्री के मैच के लिए गेंद बनाने को कहा था | icc
तीन तरह की गेंद का इस्तेमाल होता है क्रिकेट मे
टेस्ट मे कुकाबुरा , ड्यूक , और एसजी गेंद का इस्तेमाल होता है | भारत मे एसजी जबकि वेस्ट इंडीज मे ड्यूक गेंद जबकि तथा अन्य देश कुकाबुरा गेंद का प्रयोग करते हैं | वनडे और टी 20 मे सिर्फ कुकाबुरा गेंद का इस्तेमाल होता है | भारत मे प्रयोग होने वाली एसजी गेंद मे सभी छ सीम की सिलाई हाथ से होती होती है | जिसकी वजह से सीम ज्यादा उभरी होती है जो रिवेर्स स्विंग मे मददगार होती है |
केसे बनती है पिंक गेंद (गुलाबी गेंद और क्रिकेट )
- लेदर पर डई करने से गुलाबी रंग नही आता | इसके लिए गेंद को पेंट किया जाता है फिर काले धागे से सिलाई की जाती है |
- गुलाबी रंग की पेंट की अलग परत लगाई जाती है
- एक गेंद को बनाने मे आठ दिन लगते हैं |
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